
श्री शाकम्भरी चालीसा - १
Shri Shakambhari Chalisa - 1

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श्री शाकम्भरी चालीसा हिंदी बोल -
॥दोहा॥
दाहिने भीमा ब्रामरी अपनी छवि दिखाए, बाईं ओर सतची नेत्रों को चैन दीवलए I
भूर देव महारानी के सेवक पहरेदार, मां शकुंभारी देवी की जाग मई जे जे कार II
॥चौपाई॥
जे जे श्री शकुंभारी माता, हर कोई तुमको सिष नवता I
गणपति सदा पास मई रहते, विघन ओर बढ़ा हर लेते II
हनुमान पास बलसाली, अगया टुंरी कभी ना ताली I
मुनि वियास ने कही कहानी, देवी भागवत कथा बखनी II
छवि आपकी बड़ी निराली, बढ़ा अपने पर ले डाली I
अखियो मई आ जाता पानी, एसी किरपा करी भवानी II
रुरू डेतिए ने धीयां लगाया, वार मई सुंदर पुत्रा था पाया I
दुर्गम नाम पड़ा था उसका, अच्छा कर्म नहीं था जिसका II
बचपन से था वो अभिमानी, करता रहता था मनमानी I
योवां की जब पाई अवस्था, सारी तोड़ी धर्म वेवस्था II
सोचा एक दिन वेद छुपा लूं, हर ब्रममद को दास बना लूं I
देवी-देवता घबरागे, मेरी सरण मई ही आएगे II
विष्णु शिव को छोड़ा उसने, ब्रह्माजी को धीयया उसने I
भोजन छोड़ा फल ना खाया, वायु पीकेर आनंद पाया II
जब ब्रहाम्मा का दर्शन पाया, संत भाव हो वचन सुनाया I
चारो वेद भक्ति मई चाहू, महिमा मई जिनकी फेलौ II
ब्ड ब्रहाम्मा वार दे डाला, चारों वेद को उसने संभाला I
पाई उसने अमर निसनी, हुआ प्रसन्न पाकर अभिमानी II
जैसे ही वार पाकर आया, अपना असली रूप दिखाया I
धर्म धूवजा को लगा मिटाने, अपनी शक्ति लगा बड़ाने II
बिना वेद ऋषि मुनि थे डोले, पृथ्वी खाने लगी हिचकोले I
अंबार ने बरसाए शोले, सब त्राहि-त्राहि थे बोले II
सागर नदी का सूखा पानी, कला दल-दल कहे कहानी I
पत्ते बी झड़कर गिरते थे, पासु ओर पाक्सी मरते थे II
सूरज पतन जलती जाए, पीने का जल कोई ना पाए I
चंदा ने सीतलता छोड़ी, समाए ने भी मर्यादा तोड़ी II
सभी डिसाए थे मतियाली, बिखर गई पूज की तली I
बिना वेद सब ब्रहाम्मद रोए, दुर्बल निर्धन दुख मई खोए II
बिना ग्रंथ के कैसे पूजन, तड़प रहा था सबका ही मान I
दुखी देवता धीयां लगाया, विनती सुन प्रगती महामाया II
मा ने अधभूत दर्श दिखाया, सब नेत्रों से जल बरसाया I
हर अंग से झरना बहाया, सतची सूभ नाम धराया II
एक हाथ मई अन्न भरा था, फल भी दूजे हाथ धारा था I
तीसरे हाथ मई तीर धार लिया, चोथे हाथ मई धनुष कर लिया II
दुर्गम रक्चाश को फिर मारा, इस भूमि का भार उतरा I
नदियों को कर दिया समंदर, लगे फूल-फल बाग के अंदर II
हारे-भरे खेत लहराई, वेद ससत्रा सारे लोटाय I
मंदिरो मई गूंजी सांख वाडी, हर्षित हुए मुनि जान पड़ी II
अन्न-धन साक को देने वाली, सकंभारी देवी बलसाली I
नो दिन खड़ी रही महारानी, सहारनपुर जंगल मई निसनी II
॥दोहा॥
शाकंभरी देवी की महिमा अपरंपार , ॐ इन्ही को भाज रहा सारा संसार II
Shri Shakambhari Chalisa Lyrics in English -
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